मैं भगवान् की दिव्य सन्तान हूँ। मेरा जीवन भगवान् के विधान के अनुरूप ही रहेगा। मैं भगवान् का प्रतिनिधि, प्रतिरूप या मूर्त रूप हूँ। मैं ऋषि-ऋषिकाओं एवं वीर-वीराङ्गनाओं की दिव्य वीर सन्तान हूँ। मैं उन्हीं का वर्तमान या मूर्त रूप हूँ। मैं स्वयं ऋषि-ऋषिका हूँ, मेरा ज्ञान, जीवन, पुरुषार्थ व परमार्थ या समग्र आचरण ऋषियों जैसा ही रहेगा। यह विचार या संकल्प हमारे प्रत्येक योगी भाई-बहन को प्रतिदिन उठते ही अवश्य करना है। इसी से उच्च चेतना में जीने का अभ्यास प्रारम्भ हो जायेगा।