मिशन और विजन

100 प्रतिशत मतदान, 100 प्रतिशत राष्ट्रवादी चिन्तन, 100 प्रतिशत विदेशी कम्पनियों का बहिष्कार व स्वदेशी को आत्मसात् करके, देशभक्त लोगों को 100 प्रतिशत योगमय भारत का निर्माण कर स्वस्थ, समृद्ध संस्कारवान् बनाना-यही है 'भारत स्वाभिमान' का अभियान। यही है इसे आत्मसात करने वाले सदस्यों की प्रतिज्ञायें। इसी से आयेगी देश में नई आजादी व नई व्यवस्था और भारत बनेगा महान् और राष्ट्र की सबसे बड़ी समस्या-भ्रष्टाचार का होगा पूर्ण समाधान। जगत् की दौलत, पद, सत्ता, रूप एवं ऐश्वर्य के प्रलोभन से योगी ही बचा सकता है। अतः राष्ट्र-जागरण के इस भारत स्वाभिमान के अभियान में प्रत्येक योग-शिक्षक, कार्यकर्त्ता एवं सदस्य का योगी होना उसकी प्राथमिकता एवं अनिवार्य शर्त है क्योंकि योग न करने के कारण अर्थात् योगी न होने से आत्मविमुखता पैदा होती है।और आत्मविमुखता का ही परिणाम हैं- बेईमानी, भ्रष्टाचार, हिंसा, अपराध, असंवेदनशीलता, अकर्मण्यता, अविवेकशीलता, अजागरूकता, अजितेन्द्रियता, असंयम एवं अपवित्रता। हमने योग जागरण के साथ राष्ट्र-जागरण का कार्य आरम्भ करके अथवा योग-धर्म को राष्ट्र-धर्म से जोड़कर कोई विरोधाभासी कार्य नहीं किया है अपितु योग को विराट रूप में स्वीकार किया है। योग-धर्म एवं राष्ट्र-धर्म को लेकर हमारे मन में कोई संशय, उलझन, भ्रम या असामन्जस्य नहीं है।

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हमारी नीयत एवं नीतियाँ एकदम साफ हैं और हमारा इरादा विभाजित भारत को एक एवं नेक करने का है। योग का अर्थ ही जोड़ना है। योग को माध्यम बना, हम पूरे राष्ट्र को संगठित करना चाहते हैं। हम देश के प्रत्येक व्यक्ति को प्रथम योगी बनाना चाहते हैं। जब देश का प्रत्येक व्यक्ति योगी होगा, तो वह एक चरित्रवान् युवा होगा, वह जागरूक किसान होगा, वह संस्कारित सैनिक, सुरक्षाकर्मी एवं पुलिसकर्मी होगा, वह कर्त्तव्य-परायण अधिकारी, कर्मचारी एवं श्रमिक होगा, वह ऊर्जावान उद्योगपति एवं व्यापारी होगा, वह देशप्रेमी कलाकार एवं पत्रकार होगा, वह राष्ट्रहित को समर्पित वैज्ञानिक होगा, वह स्वस्थ, कर्मठ एवं अनुभवी वरिष्ठ नागरिक होगा एवं वह संवेदनशील एवं विवेकशील न्यायाधीश, अधिवक्ता होगा क्योंकि हमारी यह स्पष्ट मान्यता है कि आत्मोन्नति के बिना राष्ट्रोन्नति नहीं हो सकती। योग करके एवं करवाकर हम एक इंसान को एक नेक इन्सान बनायेंगे। एक माँ को एक आदर्श माँ बनायेंगे। योग से आदर्श माँ व आदर्श पिता तैयार कर राम व कृष्ण जैसी सन्तानें फिर से पैदा हों, ऐसी संस्कृति एवं संस्कारों की नींव डालेंगे। योग से आत्मोन्मुखी हुआ व्यक्ति जब स्वयं में समाज, राष्ट्र, सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड व जीव मात्र को देखेगा तो वह किसी को धोखा नहीं देगा, वह किसी की हिंसा नहीं करेगा क्योंकि वह अनुभव करेगा कि दूसरों से झूठ बोलना, बेईमानी करना व धोखा देना मानो स्वयं से ही विश्वासघात करना है। आत्म-विमुखता के कारण ही देश में भ्रष्टाचार, बेईमानी, अनैतिकता, अराजकता व असंवेदनशीलता है। हम इस सम्पूर्ण योग आन्दोलन से इस धरती पर ऋषियों की संस्कृति को पुनः स्थापित कर सुख, समृद्धि, आनन्द एवं शान्ति का साम्राज्य लायेंगे।